Shivraj Singh Chouhan’s Statement: झारखंड में एक हालिया चुनावी रैली में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्य में कथित ‘राज्य प्रायोजित घुसपैठ’ के बारे में गंभीर टिप्पणी की। उन्होंने भारत को ‘धर्मशाला’ नहीं मानने की बात कही, जहां कोई भी व्यक्ति आकर बस सकता है। चौहान के अनुसार, विदेशी घुसपैठिये झारखंड के लिए एक “गंभीर खतरा” हैं, विशेष रूप से वहां के आदिवासी समुदाय और उनके संसाधनों के लिए।
चौहान ने इस रैली में यह आरोप लगाया कि विदेशों से घुसपैठ कर रहे लोग आदिवासी क्षेत्रों में आकर बस रहे हैं और उन्हें धोखे से स्थानीय आदिवासी महिलाओं से विवाह करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। उनका कहना था कि झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के नेतृत्व वाला गठबंधन इन घुसपैठियों को संरक्षण दे रहा है ताकि वोट बैंक हासिल किया जा सके। उन्होंने यह भी दावा किया कि इन घुसपैठियों को वोटर आईडी, राशन कार्ड और आधार कार्ड जैसी सुविधाएं दी जा रही हैं, जिससे स्थानीय जनसंख्या की संरचना प्रभावित हो रही है।
चौहान के इस बयान से यह स्पष्ट होता है कि वे झारखंड में होने वाली जनसंख्या वृद्धि और घुसपैठ को एक राजनीतिक मुद्दा बना रहे हैं। उनके अनुसार, यह घुसपैठ झारखंड के संथाल परगना जैसे क्षेत्रों में आदिवासी आबादी को खतरे में डाल रही है।
राजनीतिक बयानबाजी और मानवाधिकार उल्लंघन
चौहान की टिप्पणियां एक ऐसे समय में आईं हैं जब राज्य में आगामी विधानसभा चुनाव की सरगर्मी तेज हो चुकी है। उनकी ये बातें एक राजनीतिक बयानी के रूप में सामने आई हैं, जो राष्ट्रीय सुरक्षा और मानवाधिकारों के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता को दर्शाती हैं।
घुसपैठ की समस्या को गंभीर रूप से उठाते हुए चौहान ने इसे राज्य की सुरक्षा से जोड़ते हुए चुनावी लाभ की ओर इशारा किया। हालांकि, ऐसे बयानों से यह भी संभावना बनती है कि यह एक विशेष समुदाय के खिलाफ नफरत और भेदभाव को बढ़ावा दे सकता है, जो मानवाधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।
यद्यपि घुसपैठ के मुद्दे पर चिंता व्यक्त करना वाजिब हो सकता है, लेकिन इन मुद्दों को इस तरह से उठाना कि यह पूरी तरह से एक समुदाय के खिलाफ नफरत को बढ़ावा दे, यह मानवाधिकारों के सिद्धांतों के खिलाफ जा सकता है। इसके कारण निर्दोष लोग, विशेष रूप से आदिवासी और प्रवासी समुदाय, बुरी तरह प्रभावित हो सकते हैं और उन्हें हिंसा का शिकार भी बनना पड़ सकता है।
झारखंड की आदिवासी अधिकारों की स्थिति
झारखंड में आदिवासी समुदायों के लिए भूमि अधिकारों की लड़ाई एक लंबा संघर्ष रही है। इन समुदायों को उनकी जमीन और संसाधनों की रक्षा करने में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। शिवराज सिंह चौहान के बयान में आदिवासी महिलाओं का उल्लेख किया गया है, जो विदेशियों द्वारा धोखे से शिकार हो रही हैं। यह मुद्दा आदिवासी समुदायों की सुरक्षा और अधिकारों के उल्लंघन की ओर इशारा करता है, जो पहले से ही अपनी भूमि और संस्कृति को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
चौहान का यह कहना कि झामुमो के नेतृत्व में यह घुसपैठियों को संरक्षण दिया जा रहा है, यह संकेत करता है कि सत्ता में रहने वाले दलों के बीच वोट बैंक की राजनीति के चलते मानवाधिकारों की अनदेखी की जा रही है। इससे आदिवासी समुदायों के अधिकार और उनके अस्तित्व को खतरा हो सकता है।
नागरिकता रजिस्टर और मानवाधिकार
चौहान ने यह भी कहा कि अगर भाजपा राज्य में सत्ता में आती है तो नागरिकता रजिस्टर लागू किया जाएगा और विदेशी घुसपैठियों को बाहर निकाला जाएगा। राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) की अवधारणा, जो असम में पहले ही लागू हो चुकी है, एक विवादास्पद कदम रही है। कई मानवाधिकार संगठनों ने इसे असंवैधानिक और भेदभावपूर्ण करार दिया है, क्योंकि यह गरीब और शहरी इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए नागरिकता साबित करने में दिक्कत पैदा कर सकता है।
असम में NRC के दौरान लाखों लोग नागरिकता से वंचित हो गए थे, जिनमें अधिकांश वे लोग थे जिनके पास दस्तावेजों का अभाव था। झारखंड में भी यदि NRC लागू होता है तो यह आदिवासी समुदायों और गरीब लोगों के लिए एक बड़ी समस्या पैदा कर सकता है, क्योंकि इन समुदायों के पास अक्सर पहचान पत्रों का अभाव होता है।
निष्कर्ष: सुरक्षा और मानवाधिकार के बीच संतुलन
शिवराज सिंह चौहान के बयान में उठाए गए मुद्दे झारखंड की राजनीति और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े हैं, लेकिन इसे मानवाधिकारों के परिपेक्ष्य में देखना भी आवश्यक है। किसी भी राष्ट्र को अपनी सुरक्षा के लिए कदम उठाने का अधिकार है, लेकिन इस प्रक्रिया में यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि कोई भी व्यक्ति अपनी नागरिकता और अधिकारों से वंचित न हो।
झारखंड की चुनावी राजनीति में इस समय जो तकरार हो रही है, उसमें यह बहुत महत्वपूर्ण है कि राज्य की सभी राजनीतिक पार्टियां अपने बयानों में संयम बरतें और किसी भी स्थिति में मानवाधिकारों का उल्लंघन न हो। किसी भी राजनीतिक बयानबाजी से पहले, यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह सभी समुदायों के लिए न्यायपूर्ण और समावेशी हो।
झारखंड की आदिवासी जनसंख्या की विशेष समस्याओं को हल करना न केवल सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से जरूरी है, बल्कि यह राज्य की समृद्धि और स्थिरता के लिए भी आवश्यक है।
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